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Friday, July 2, 2010

IN THE PRESS इतिहास से खोज निकाला बागी गांव


इतिहास से खोज निकाला बागी गांव
1 Sep 2008, 0044 hrs IST,भाषा
लखनऊ : क्रूर अंग्रेजी हुकूमत ने तो आज से 150 साल पहले उनके गांव को जमींदोज करके 'गैर चिरागी करार दे दिया था। इतिहास के पन्नों से उसका नाम तक मिटा दिया गया था। मुंबई से आए 62 साल के मोहम्मद लतीफ अंसारी ने अपने पुरखों के गांव को न सिर्फ खोज निकाला है, बल्कि अब उसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान दिलवाने में लग गए हैं। अंसारी ने यूपी की राजधानी लखनऊ से कोई 200 किलोमीटर दूर वर्तमान बस्ती ज़िले के बहादुरपुर ब्लॉक में मनोरमा नदी के तट पर मौजूद अपने पुरखों के गांव 'महुआडाबर' की खोज की। उन्होंने बताया कि 1857 के संघर्ष के दौरान उनके पुरखों ने फैजाबाद में देसी सैनिकों से जान बचाकर भाग रहे सात अंग्रेज अफसरों में से छह का तो मार डाला था, मगर एक सार्जंट बूशर भाग निकला था। यह वाकया 10 जून 1857 का था। उन्होंने बताया कि अपने अफसरों की हत्या से नाराज अंग्रेजी फौजों ने जवाबी हमला बोला। 20 जून 1857 को बस्ती के डिप्टी मैजिस्ट्रेट विलियम्स पेपे ने तब हथकरघा उद्योग का केंद्र रहे लगभग 5000 की आबादी वाले महुआडाबर को घुड़सवार सैनिकों से चारों तरफ से घिरवाकर आग लगवा दी थी। मकानों, मस्जिदों और हथकरघा केंद्रों को जमींदोज करवा दिया था। गांव के अधिकतर लोग मारे गए और जो बचे वे अपनी जान बचाकर सैकड़ों किलोमीटर दूर गुजरात के अहमदाबाद, बड़ौदा और महाराष्ट्र के मालेगांव में जा बसे। अंसारी ने बताया कि अपने बाप दादा से सुने किस्से जेहन में लिए जब वे 8 फरवरी 1994 को अपने पुरखों के गांव की तलाश में बस्ती के बहादुरपुर विकास खंड में पहुंचे, तो उस जगह पर मटर, अरहर और गेहूं की फसलों के बीच जली हुई दो मस्जिदों के अवशेष भर दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने बाद में उनके पुरखों के गांव महुआडाबर को न सिर्फ राजस्व अभिलेखों से गायब करवा दिया, बल्कि अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए उस स्थान से 50 किलोमीटर दूर बस्ती-गोण्डा सीमा पर गौरा बाजार के पास महुआडाबर नाम से एक नया गांव बसा दिया, जो अब भी आबाद है। अंसारी ने बताया कि उनके पुरखों के गांव की तलाश शायद कभी पूरी नहीं हो पाती, यदि तत्कालीन ऐतिहासिक दस्तावेजों में अब भी मौजूद अंग्रेज अफसर सार्जंट बूशर का पत्र उनके हाथ नहीं लगा होता।

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